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केन्द्र एवं राज्य पोषित योजनाएं:- भारत सरकार द्वारा वर्ष 2009 से प्रारम्भ किये गये राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम एवं राज्य शासन द्वारा निर्धारित नीति एवं निर्देशों के अनुरूप विभाग द्वारा ग्रामीण पेयजल योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा था। भारत सरकार द्वारा जल शक्ति मंत्रालय के गठन के उपरान्त पेयजल एवं स्वच्छता विभाग द्वारा राष्ट्रीय जल जीवन मिशन दिसम्बर 2019 में प्रारम्भ किया गया है। मिशन के माध्यम से भारत सरकार द्वारा वर्ष 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को क्रियाशील घरेलू नल कनेक्शन द्वारा शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जाना लक्षित किया गया है।

 

1. ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम:- भारत सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग द्वारा जल जीवन मिशन के कार्यान्वयन हेतु प्रचालन दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। दिशा-निर्देशों में प्रावधानों के अनुसार प्रदेश की ग्रामीण क्षेत्रों में जलप्रदाय योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं तथा तथा ग्रामीण परिवारों को क्रियाशील घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु वित्तीय ढाचे का अनुपात 50:50 (केन्द्रांश : राज्यांश) निर्धारित है।

 

राज्य शासन द्वारा निर्धारित मापदण्ड अनुसार हैण्डपम्प योजनाओं से जलप्रदाय हेतु 55 ली. प्रति व्यक्ति प्रतिदिन एवं नलजल योजनाओं के माध्यम से 70 ली. प्रति व्यक्ति प्रतिदिन निर्धारित है।

 

प्रदेश की अधिकांश ग्रामीण जलप्रदाय योजनाएं भू-गर्भीय जल स्त्रोतों (मुख्यतः नलकूपों) पर आधारित हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विभाग द्वारा अधिकाधिक मात्रा में नलजल योजनाओं का क्रियान्वयन कर घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से ग्रामीण आबादी को पेयजल उपलब्ध कराने हेतु प्राथमिकता दी जा रही है, ताकि क्रियाशील घरेलू नल कनेक्षन से पेयजल प्रदाय के आच्छादन को बढ़ाया जा सके।

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राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के क्रियान्वयन हेतु भारत सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय द्वारा जारी मार्गदर्शिका में दिये गये निर्देशों के तारतम्य में बसाहट को पूर्णतः आच्छादित श्रेणी में वर्गीकृत करने हेतु राज्य शासन द्वारा निम्नानुसार मापदण्ड निर्धारित किये गये हैं:-

(क) ऐसी बसाहटें जिनमें प्रत्येक परिवार को 55 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के मान से सुरक्षित पेयजल उपलब्ध करा दिया गया हो।

(ख) प्रत्येक परिवार को उसके निवास स्थान से अधिकतम 300 मीटर की परिधि में सुरक्षित पेयजल स्त्रोत उपलब्ध करा दिया गया हो।

(ग) पहाड़ी क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार को उसके निवास स्थान से अधिकतम 30 मीटर की ऊॅचाई या निचाई पर पेयजल स्त्रोत उपलब्ध करा दिया गया हो।

(घ) ऐसी बसाहटें जिनमें नलजल प्रदाय योजनाओं के माध्यम से जलप्रदाय किया जाना है, न्यूनतम मात्रा 70 लीटर प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन के मान से पेयजल उपलब्ध करा दिया गया हो।

 

3. जल जीवन मिशन का उद्देश्यय %& इस मिशन के व्यापक उद्देश्य निम्नलिखित हैः

1. प्रत्येक ग्रामीण परिवार को कार्यशील घरेलू नल कनेक्शन उपलब्ध कराना।

2. गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्रों, सूखाग्रस्त और रेगिस्तानी क्षेत्रों में स्थित गांवों, सांसद आदर्श ग्राम योजना (एस.ए.जी.वाई.) में शामिल गांवों आदि में एफ.एच.टी.सी. के प्रावधान को प्राथमिकता देना।

3. स्कूलों, आंगनवाड़ी केन्द्रों, ग्राम पंचायत भवनों, स्वास्थ्य केन्द्रों, अरोग्यता केन्द्रों और सामुदायिक भवनों में कार्यशील नल कनेक्शन उपलब्ध कराना।

4. नल कनेक्शनों की कार्यशीलता की निगरानी करना।

5. नकद, वस्तु और/अथवा मेहनत तथा स्वैच्छिक श्रमदान के द्वारा स्थानीय समुदाय में स्वैच्छिक अपनत्व को बढ़ावा देना और उसे सुनिश्चित करना।

6. जल आपूर्ति प्रणाली अर्थात् जल स्त्रोत, जल आपूर्ति अवसंरचना और नियमित प्रचालन एवं रख-रखाव हेतु निधियों का स्थायित्व सुनिश्चित करने में सहायता देना।

7. इस सेक्टर में मानव संसाधनों का सशक्तीकरण और उनका विकास करना ताकि निर्माण कार्य, प्लंबिंग, बिजली, जल गूणवत्ता प्रबंधन, जल शोधन, जलागत संरक्षण, प्रचालन एवं रख-रखाव आदि से जुड़ी मांग को, अल्पकाल और दीर्घकाल में पूरा किया जा सके

8. सुरक्षित पेयजल के विभिन्न पक्षों और महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करना और हितधारकों को इस प्रकार भागीदार बनाना कि जल, हर किसी का सरोकार बन सके।

4. जल जीवन मिशन के घटक:- जल जीवन मिशन के अंतर्गत निम्नलिखित घटक सम्मिलित किए गए हैं:-

1. प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नलजल कनेक्शन उपलब्ध कराने के लिए अंतः ग्राम पाइपलाइन जल आपूर्ति अवसंरचना का विकास करना।

2. जल आपूर्ति प्रणाली को दीर्घकालीन स्थायित्व उपलब्ध कराने के लिए विश्वसनीय पेयजल स्त्रोतों का विकास और/अथवा मौजूदा स्त्रोतों की क्षमता को बढ़ाना।

3. जहां आवश्यक हो, वहां प्रत्येक ग्रामीण परिवार की आवश्यकता को पूरा करने के लिए थोक (बल्क) वाॅटर ट्रांसफर, शोधन संयंत्र और वितरण नेटवर्क स्थापित करना।

4. जहां जल गुणवत्ता की समस्या हो, वहां संदूषणों के निवारण हेतु तकनीकी विधियों का प्रयोग करना।

5. 55 एल.पी.सी.डी. के न्यूनतम सेवा स्तर पर एफ.एच.टी.सी. उपलब्ध कराने की दृष्टि से, पहले ही पूरी हो चुकी और चालू स्कीमों की रेट्रोफिटिंग करना।

6. गंदे जल का प्रबंधन।

7. सहायक गतिविधियां जैसे आई.ई.सी., एच.आर.डी., प्रशिक्षण, सार्वजनिक सुविधाओं का विकास, जल गुणवत्ता प्रयोगशालाएं, जल गुणवत्ता परीक्षण और निगरानी, अनुसंधान और विकास, ज्ञान केन्द्र, समुदायों का क्षमता निर्माण आदि।

8. भारत सरकार के वित्त मंत्रालय की फ्लेक्सी निधि से जुड़े दिशा-निर्देशों के अनुसार, प्राकृतिक आपदा/दुर्घटना के कारण उभरने वाली किन्हीं ऐसी अनदेखी चुनौतियों से निपटना, जिनसे वर्ष 2024 तक सभी परिवारों को एफ.एच.टी.सी. उपलब्ध कराने का लक्ष्य प्रभावित होता हो।

5. बसाहटों में पेयजल व्यवस्था की स्थिति:- प्रदेश में विगत वर्षों में किये गये कार्यों के फलस्वरूप 01 अप्रैल, 2020 की स्थिति में कुल 128744 बसाहटों में से 108186 बसाहटें पूर्णतः आच्छादित की श्रेणी मे हैं एवं 20303 बसाहटें आंशिक पूर्ण श्रेणी में है। पूर्णतः आच्छादित श्रेणी में 55 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन अथवा इससे अधिक के मापदण्ड तथा आंषिक पूर्ण श्रेणी में 40 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन से अधिक के मान से पेयजल प्रदाय वाली बसाहटों को रखा जाता है। आंशिक पूर्ण बसाहटों में जल गुणवत्ता से प्रभावित 255 बसाहटें भी सम्मिलित हैं। राज्य शासन की वर्तमान प्राथमिकता अनुसार पेयजल हेतु हैण्डपंपों पर निर्भरता कम करते हुए ग्रामीण आबादी को अधिक से अधिक क्रियाशील घरेलू नल कनेक्शनों के माध्यम से पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित की जाना है। अतः बसाहटों के आच्छादन हेतु नलकूप आधारित योजनाओं पर निर्भरता कम करते हुये उपलब्ध वित्तीय संसाधनों के अनुसार सतही स्त्रोत आधारित समूह नलजल योजनाओं के क्रियान्वयन में निरंतर वृद्धि की जा रही है।

5.1 हैण्डपंप योजनाओं से बसाहटों का आच्छादन:- राज्य ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अन्तर्गत वर्ष 2020-21 हेतु कुल 7850 आंशिक पूर्ण बसाहटों को पूर्णतः आच्छादित करने के निर्धारित लक्ष्य के विरुद्ध माह दिसम्बर, 2020 तक कुल 2354 बसाहटों को पूर्णतः आच्छादित किया गया है, शेष कार्य निरंतरित हैं।

5.2 नलजल योजनाओं से बसाहटों का आच्छादन:- वर्ष 2020-21 में नलजल योजनाओं के माध्यम से माह दिसम्बर, 2020 तक कुल 611 बसाहटों को आच्छादित किया गया है। पूर्ण की गई नलजल योजनाओं से क्रियाशील घरेलू नल कनेक्शन भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं।

6. गुणवत्ता प्रभावित बसाहटों में कार्य:- प्रदेश के कुछ जिलों के पेयजल स्रोतों में रसायनिक तत्वों की मात्रा निर्धारित मापदण्डों से अधिक पाई गई है, इनमें प्रमुख रूप से फ्लोराईड तत्व हैं। राष्ट्रीय जल जीवन मिशन कार्यक्रम के अन्तर्गत इन पेयजल गुणवत्ता प्रभावित बसाहटों में शुद्ध पेयजल व्यवस्था उपलब्ध कराने हेतु कार्य किये जा रहे हैं। प्रदेश की गुणवत्ता प्रभावित कुल चिन्हित 9183 बसाहटों में से 8928 बसाहटों में सुरक्षित वैकल्पिक स्त्रोतों पर आधारित योजनाओं के माध्यम से शुद्ध पेयजल माह मार्च 2020 तक, उपलब्ध कराया जा चुका है। दिनांक 01.04.2020 की स्थिति में शेष 255 गुणवत्ता प्रभावित बसाहटों में से कुल 13 बसाहटों में वैकल्पिक पेयजल व्यवस्था की जा चुकी है। पेयजल गुणवत्ता से प्रभावित शेष चिन्हित बसाहटों में वैकल्पिक व्यवस्था से शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के कार्य किये जा रहे हैं

7. ग्रामीण शालाओं एवं आँगनवाडियो में जल प्रदाय:- प्रदेश की सभी शासकीय भवन युक्त ग्रामीण शालाओं एवं आगनवाड़ियों में पेयजल व्यवस्था हेतु संबंधित विभाग से राशि प्राप्त होने पर कार्य कराया जाता है। भारत सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग द्वारा दिनांक 2 अक्टूबर 2020 से 100 दिवस की कार्य योजना के अन्तर्गत शालाओं, आँगनवाड़ियों एवं आश्रमों में पाइपों/ नलजल योजनाओं के द्वारा क्रियाशील घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से पेयजल व्यवस्था किया जाना है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत ग्रामीण जनों में साफ-सफाई के महत्व पर जागरुकता पैदा करना और स्कूली बच्चों में सफाई के महत्व को समझाना तथा शालाओं एवं आँगनवाड़ियो में क्रियाशील नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित पेयजल व्यवस्था उपलब्ध कराना इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है।

8. आदिवासी उपयोजना:- आदिवासी उपयोजना क्षेत्र की बसाहटों में विभाग द्वारा पेयजल व्यवस्था के कार्य प्राथमिकता के आधार पर किये जा रहे हैं। प्रदेश में आदिवासी बाहुल्य बसाहटों में वर्ष 2020-21 में माह दिसम्बर, 2020 तक कुल 854 बसाहटों में पेयजल व्यवस्था के कार्य पूर्ण किये गये है।

9.अनुसूचित जाति उपयोजना:- अनुसूचित जाति उपयोजना क्षेत्र की बसाहटों में विभाग द्वारा पेयजल व्यवस्था के कार्य प्राथमिकता के आधार पर किये जा रहे हैं। प्रदेश में अनुसूचित जाति बाहुल्य बसाहटों में वर्ष 2020-21 में माह दिसम्बर, 2020 तक कुल 186 बसाहटों में पेयजल व्यवस्था के कार्य पूर्ण किये गये हैं।

10. गुणवत्ता प्रभावित पेयजल स्त्रोतों वाली बसाहटों की योजनाओं का विवरणः- राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अंतर्गत फ्लोराइड, खारापानी व लौह तत्व आदि जल गुणवत्ता समस्या से प्रभावित ग्रामों में शुद्ध पेयजल प्रदाय की वैकल्पिक व्यवस्था हेतु कार्य किये जा रहे हैं। भारत सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अन्तर्गत बसाहटों में वैकल्पिक पेयजल योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। दिनांक 01.04.2020 की स्थिति में 255 गुणवत्ता प्रभावित बसाहटें पाई गई थीं। प्राथमिकता के आधार पर इन बसाहटों में विभाग द्वारा वैकल्पिक पेयजल व्यवस्था उपलब्ध कराने के प्रयास किये जा रहे हैं।

10.1. फ्लोरोसिस नियंत्रण:- पेयजल में 1.5 मि.ग्रा./लीटर से अधिक फ्लोराइड की मात्रा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। फ्लोराइड प्रदूषित पेयजल केे निरंतर सेवन से फ्लोरोसिस बीमारी हो सकती है, जिसका प्रारंभिक अवस्था में बचाव किया जा सकता है। दिनांक 01.04.2020 की स्थिति में 11 जिलों की 205 बसाहटें फ्लोराईड के अधिक्य से प्रभावित थी जिनमें से 13 बसाहटों में पेयजल व्यवस्था वर्ष 2020-21 में की गई है तथा शेष बसाहटों में सुरक्षित पेयजल व्यवस्था किये जाने के प्रयास किये जा रहे हैं।

10.2 खारेपन के नियंत्रण की योजनाएं:- पेयजल में कुल घुलित लवणों की अधिकतम स्वीकार्य सीमा 2000 मिलीग्राम प्रति लीटर (कोई अन्य स्रोत न होने की दशा में) है। पेयजल में उपरोक्त मात्रा से अधिक लवण होने पर पानी खारा हो जाता है। दिनांक 01.04.2020 की स्थिति के अनुसार प्रदेश की 10 बसाहटों में खारेपन की अधिकता पाई गई है। इन सभी बसाहटों में वैकल्पिक पेयजल व्यवस्था उपलब्ध कराने की कार्यवाही की जा रही है।

10.3 लौह तत्व की अधिकता का निराकरण:- पेयजल में कुल घुलित लवणों की अधिकतम स्वीकार्य सीमा 2000 मिलीग्राम प्रति लीटर (कोई अन्य स्रोत न होने की दशा में) है। पेयजल में उपरोक्त मात्रा से अधिक लवण होने पर पानी खारा हो जाता है। दिनांक 01.04.2020 की स्थिति के अनुसार प्रदेश की 10 बसाहटों में खारेपन की अधिकता पाई गई है। इन सभी बसाहटों में वैकल्पिक पेयजल व्यवस्था उपलब्ध कराने की कार्यवाही की जा रही है।

11. भूजल संवर्धन एवं पुनर्भरण कार्यक्रम:- प्रदेश में तेजी से बढ़ते शहरीकरण, औद्योगीकरण तथा कृषि के रकवे में हुई वृद्धि के फलस्वरूप भूजल का अत्यधिक उपयोग हो रहा है। इसी प्रकार विगत कुछ वर्षों से प्रदेश के विभिन्न अंचलों में असामान्य एवं असंतुलित वर्षा हो रही है। इन कारणों से भू-जल के स्तर में निरंतर गिरावट परिलक्षित हो रही है। भूजल के अत्यधिक दोहन से भूजल की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है। गिरते भूजल स्तर एवं भूजल स्त्रोतों में उपलब्ध जल की मात्रा में आ रही कमी को दृष्टिगत रखते हुये भूजल संवर्धन एवं वर्षा जल पुनर्भरण के कार्य को करना अत्यंत आवश्यक है।

11.1 भूजल की उपलब्धता के आधार पर केन्द्रीय भू-जल बोर्ड द्वारा वर्ष 2016-17 में किये गये आंकलन के अनुसार प्रदेश के 24 जिलों के 22 विकास खंड अतिदोहित (Over-exploited), 7 विकासखण्ड दोहित (Critical) एवं 44 विकास खण्ड अर्द्धदोहित (Semi Critical) श्रेणी में हैं। इन विकास खंडों में भूजल स्तर में गिरावट को देखते हुये इसका संरक्षण एवं संवर्धन करना अत्यंत आवश्यक है।